Wednesday, August 29, 2007

Various Satsang Organisations

Recently there was an article in Indian Express about diffrent Satsang organisations based on Hindu philosophy.


In this article detailed information about various satsang organisation was given. Details like number of members, their branches, current head of the organisation and who established the organisation was given. Some controvarsies about these organisation was also given.


Satsang organisation established by Sri Sri Thakur Anukulchandra was at the top as per number of members and no controvarsy was mentioned about it in this article.


For detail information click following figure and link within it.


Monday, August 27, 2007

कामिनी कांचन

हर एक नारी अपनीही माँ का अलग अलग रूप होता है और हर माँ साक्षात् जगत्जननी का रुप है। परस्त्री को देखते समय अपने अन्दर मातृत्व की भावना जागनी चाहिऐ। अगर ऐसा नही हो सका तो परस्त्री को छुना तो दूर उसकी तरफ दूषित नजर से देखना भी हमारे विनाश का कारण बन सकता है।

दुनिया मे मनुष्य को जो दूःख मिलते है, बहुतांश दूःख 'कामिनी कांचन' कि लालसा से उत्पन्न होते है। अगर आपको जीवन मे सफल बनना है, तो आप को इन दो चिजोसे बहुत दूर रहना पड़ेगा। भगवान श्री रामकृष्ण ने भी इस पर बहुत बहुत जोर दिया था।

कामिनी यानी कामुक स्त्री से आप कामुकता निकाल देंगे तो वह आपको माँ जैसी लगेगी। उसी तरह अगर आप किसीभी परस्त्री कि तरफ अपनी माँ कि नजर से देखेंगे तो आप के अन्दर के विषय वासना के विष का अमृत बन सकता है,और आपको हर एक स्त्री अपनी माँ जैसी लगने लगेगी।

परस्त्री को आप माँ कि जगह कामिनी या पतित स्त्री के रूप से देखने लगोगे, तो सर्वनाश होकर रहेगा ही, इसमे कोई संदेह नही।

मन के अन्दर के विषय वासना को मिटाने के लिए कुछ विशेष प्रयास कराने होंगे, रिक्त मन विशयवासना का शिकार बन जता है, इसलिये इस मन को उच्चतम तत्वोमे ढालकर उसे हमेशा व्यस्त रखना पड़ता है। सृष्टि रचना का अभ्यास, सृष्टि विकास का शास्त्र, ब्रह्म, ब्रह्मांड और मेरा उनसे संबंध आदि उच्चतम तत्वोका अभ्यास करानेसे मन को विशयवासना के बजाय उच्चतम चिजोमे रूचि पैदा होने लगेगी। मन जिस चीज का हमेशा ध्यान या अभ्यास करता रहता है, उसमे ही उसे रूचि पैदा होती है। हम विशयवासना के बारे मे सोचना बंद करके उच्चतम विचारोंके बारे मे सोचते रहेंगे, तो हमारा विशयवासना से अपनेआप छुटकारा हो जाएगा।

विशयवासना के बारेमे हम जीतनी भी बाते करेंगे या सोचेंगे उतनेही हम उसमे फसते चले जायेंगे, इसलिये भूलकर भी इनके बारे मे सोचना और बोलना नही।

--- श्री श्री ठाकुर अनुकुलचंद्र द्वारा लिखित 'सत्यानुसरण' पर आधारित।

दुर्बलता

हमेशा यह याद रहे कि हम सब परमेश्वर कि संतान है। परमेश्वर कि संतान कभी दुर्बल और पापी नही होती है। परमेश्वर कि संतान हमेशा पवित्र, वीर और साहसी होती है। यह बात अगर आपकी समझ मे आयी तो आपको शीघ्र ही स्वर्ग के द्वार खुल जायेंगे। और अगर यह बात अपकी समझ मे नही आयी तो आप दुर्बल और अपवित्र बने रहोगे। और जबतक आपके विचारोमे और कृति मे यह बात नही आएगी तब तक आपके मन मे यह दुर्गंधी कि हम दुर्बल है, बनी रहेगी।

हमे निरंतर प्रयास करके हमारे मन के अन्दर कि यह छुपी हूई इस मलिनता को निकालना होगा। इस दुर्बलता को अपने अन्दर से निकालने के लिए हमे लगातार कोशिशे करनी पडेगी, चाहे इस दरम्यान हमे कुछ असफलता झेलनी पडेगी, लेकिन इस मार्ग से ना हटते हुये निरंतर आगे बढ़ते चलोगे तो मुक्ति अवश्य हासिल करके रहोगे।

दुर्बल मन हमेशा संदिग्ध रहता है, वह किसी भी चीज पर भरोसा नही कर सकता और अपना विश्वास खो बैठता है। सदैव दूःखी और रोगी रहता है। उसका सारा जीवन ही अंधःकारमय होकर रहता है। उसके सभी सुख और दूःख, अशांति मे डूबे जाते है। उसके सारे सुख और चैन, दूःख मे बदल जाते है। आलस्य मे सारा जीवन निरर्थही नष्ट हो जाता है। दुर्बल मन मे प्रेम, श्रध्दा और भक्ती का उगम नही होता है। दुसरे व्यक्ति कि करुणाजनक या विपत्तिजनक दूःखमय परिस्थिती देखकर दुर्बल व्यक्ति खुद निराश होकर और दूःखी हो जाता है और कभी कभी रो पड़ता है और प्रायः टूट जाता है।




लेकिन मानसिक रूप से बलवान या सबल ह्रदय वाला इन्सान, हर एक परिस्थितियोमे अविचल रहकर, हर एक विपत्तियों का समाधान निकालकर सबका दूःख हल कर लेता है। भगवान बुद्ध कि तरह प्यारभरे आनंदमय व्यवहार से सबका मन जित लेता है और सबकी समस्यायोंका हल ढूँढ लेता है। आप अपने आप को दुर्बल, कायर और दुराचारी मत समझो। अपने परमपिता कि ओर देखकर प्रार्थना करो कि,


'हे, परमपिता, अब मैं जान गया हूँ कि,
मैं आपकी संतान हूँ, मैं कायर या दुर्बल नही हूँ।
आपके ज्योतिर्मय स्वरूप को छोड़कर,

मैं अब अंधःकारमय नरक कि तरफ नही दौडुंगा।'



(श्री श्री ठाकुर अनुकुलचंद्र द्वारा लिखित 'सत्यानुसरण' पर आधारित)