Thursday, May 17, 2007

संध्याकालीन प्रार्थना

बार बार करूं बिनती, राधास्वामी आगे।
दया करो दाता मेरे, चित्त चरणन लागे॥
जनम जनम रहीं भूल मे, नहीं पाया भेदा।
काल करम के जाल मे, रही भोगत खेदा॥
जगत जीव भरमत फीरे, नित चारो खानी।
ज्ञानी योगी पिल रहे, सब मन कि घानी॥
भाग जगा मेरे आदिका, मिले सद्गुरु आई।
राधास्वामी धाम का मोहि भेद जनाई॥
उंचा से उंचा देश है, वह अधर ठिकाणी।
बिना संत पावे नही, श्रुत शब्द निशानी।
राधास्वामी नाम कि, मोहि महिमा सुनाई।
विरह अनुराग जगाय के, घर पहुंचू भाई।
साधू संग कर सार रस, मैंने पिया अघाई।
प्रेम लगा गुरू चरण मे, मन शांत ना आई।
तरप उठे बेकल रहूँ, कैसे पियाँ घर जाई।
दर्शन रस नित नित लहूं, गहे मन थिरताई।
सूरत चढ़े आकाश मे, करे शब्द बिलासा।
धाम धाम निरखत चले, पावे निज घर बासा।
यह आशा मेरे मन बसें, रहे चित्त उदासा।
विनय सुनो किरपा करो, दीजै चरण निवासा।
तुम बिन कोई समरथ नही जासे मांगू दाना।
प्रेम धर बरखा करो, खोलो अमृत खाना।
दीन दयाल दया करो, मेरे समरथ स्वामी।
सुकर करूं गावत रहूँ, नित राधास्वामी।

--- जय गुरू ---

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