प्रातः और संध्याकालीन प्रार्थना
बार बार कर जोड़कर, सविनय करू पुकार।
साधू संग मोहि देव नित, परम गुरू दातार॥
कृपा सिंधु समरथ पुरुष, आदि अनादी अपार।
राधास्वामी परम पितु, मैं तुम सदा अधार॥
बार बार बल जावुं, तम मन वारु चरण पर।
क्या मुख ले मैं गावूं, मेहर करी जस कृपा कर॥
धन्य धन्य गुरुदेव, दया सिंधु पूरण धनी।
नित्य करू तुम सेव, अचल भक्ती मोहि देव प्रभु॥
दीन अधीन अनाथ, हाथ गहा तुम आनकर।
अब राखो नित साथ, दिन दयाल कृपानिधि॥
काम क्रोध मद लोभ, सबबिधि अवगुण हार मैं।
प्रभु राखो मेरी लाज, तुम द्वारे अब मैं पड़ा॥
राधास्वामी गुरू समरथ, तुम बिन और ना दूसरा।
अब करो दया प्रत्यक्ष, तुम द्वारे एती विलंब क्यों॥
दया करो मेरे साईयाँ, देव प्रेम कि दात।
दूःख सुख कछु व्यापे नहीं, छूटे सब उत्पात॥
--- जय गुरू ---
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